वैरिकोसवेन्स: होमियोपैथी में पायें समाधान
आपने अक्सर ऐसे व्यक्ति देखें होंगे जिनके पैर, पेट आदि में फूली हुई शिराओं युक्त गुच्छे जैसे संरचना दिखती है, जो कि रक्त शिराओं के फूलकर कर टेढ़े मेढे हो जाने के कारण होता है, जिसे वेरीकोस वेन कहा जाता है|
समान्यतः सभी जानते हैं शिराओं का कार्य रक्त को शरीर के अन्य भागों से हृदय तक ले जाने का होता है, यह कार्य गुरुत्वाकर्षण के विपरीत होता है, इसलिए शिराओं के अन्दर एक दिशा वाले कपाट (वाल्व) बने होते है जिनका कार्य रक्त को शिराओं में नीचे गिरने से रोकना होता है, इन वाल्व में खराबी आने,रक्त का संचय अधिक हो जाने, अथवा कोई अवरोध आ जाने के कारन शिराए फ़ैल जाती हैं, एवं फूलकर टेढ़ी मेढ़ी हो जाती है|कारण
इस समस्या का कारण पूर्ण रूप से ज्ञात नहीं है, पर ऐसा माना जाता है कि अधिक रक्त संचय हो जाने के कारण शिराएँ शिथिल होने लगाती हैं, पेट एवं लीवर के लिम्फ चैनल में अवरोध आना भी प्रमुख कारणों में से एक है |
गर्भावस्था के
दौरान वेरीकोस वेन होना सामान्य लक्षण है जो अक्सर प्रसव पश्चात् सामान्य हो जाता
है, ऐसा भ्रूण के वजन, हार्मोनल बदलाव, और हृदय द्वारा अतिरिक्त
रक्त पम्प करने (गर्भावस्था में हृदय द्वारा भ्रूण के विकास के लिए सामान्य से
अधिक रक्त प्रवाह होता है ) के कारण होता है |
लक्षण
कई लोगों के लिए वैरिकोस वेन सामान्य समस्या होती है, जो सिर्फ देखने
में अच्छा नहीं लगता है, लेकिन कुछ लोगों को इससे दर्द और असुविधा हो सकती है,
इसके लक्षण निम्न हो सकते हैं :
1.
1. रस्सियों की तरह दिखने वाली मुड़ी, सूजी और फूली हुई नसें, जो गहरी बैंगनी या नीली दिखती हैं |
2.
पैरों में दर्द, झुनझुनाहट अथवा भारीपन महसूस
होना |
3.
पैरों में एठन, निचले हिस्से में सुजन एवं जलन
का अनुभव होना |
4.
लम्बे समय तक खड़े अथवा बैठे रहने के बाद दर्द
होना |
5.
प्रभावित स्थान में खुजली होना, त्वचा में गहरे नील अथवा काले रंग के धब्बे दिखना |
6.
पैरों में घाव (ulcer) होना |
बचाव
1.
नियमित टहलना एवं व्यायाम करना चाहिए जिससे कि
रक्त का परिसचरण सुचारू रूप से हो सके |
2.
अपने वजन को संतुलित रखें, यदि वजन अधिक है तो
उसे कम करने का प्रयास करें | आहार एवं जीवनशैली सम्बंधित नियमित कार्यों में
परिवर्तन लायें |
3. सुविधयुक्त जूते एवं चप्पलों का उपयोग करें, अधिक
हील वाले जूतों का उपयोग करने से बचे |
4.
संभव हो तो पैरों को अधिक देर तक लटकाकर न
बैठें, बीच में बीच में टहलते रहे एवं थोड़ी देर के लिए पैरो को ऊपर रखें, जिससे कि
पैरों का रक्त परिसंचरण सुचारू रहे |
5.
सोते समय पैर वाले हिस्से को थोडा ऊपर रखे |
होमियोपैथी में वैरिकोस वेन्स का समाधान :
होमियोपैथी उपचार लेते समय बीमारी का नाम ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं होता है,
बल्कि मरीज के लक्षण ही प्रमुख रूप से औषधि निर्वाचन में सहायक होते हैं |
मरीज के सामान्य लक्षण, पैतृक इतिहास, मानसिक लक्षण, समस्या के बढ़ने अथवा घटने के कारणों कि जानकारी के आधार पर होमियोपैथिक दवाइयां दी जानी चाहिए, यदि मरीज के लक्षणों का भली भांति अध्यन कर उसके समरूप दवा दी जाये तो कोई भी रोग
आसानी से पुर्णतः ठीक किया जा सकता है | वैरिकोस वेन्स के इलाज में उपयोगी दवा के बारे में यहाँ संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है, जो कि चिकित्सकीय निर्देश को नजरअंदाज़ करने के लिए नहीं है, सिर्फ सामान्य जानकारी हेतु है ताकि आमलोग भी होमियोपैथी के प्रति जागरूक हो सके :
हैमामेलिस वैरिकोस वेन्स हेतु उपयोगी दवा है, यह शिराओं की
बाहरी आवरण को मजबूत करती है एवं फैली हुई शिराओं को संकुचित करती है, इसका आतंरिक
एवं बाह्य उपयोग दोनों ही लाभदायक है, यदि रक्त प्रवाह में कोई अवरोध हो रहा हो तो
अन्य औषधि जैसे अर्निका, बेलिस, फेरममेट, पल्सेटिला, लायकोपोडियम आदि आवश्यकतानुसार
उपयोग किया जा सकता है, किन्तु इन दवाओं के लिए अन्य लक्षणों पर भी गौर किया जाना
आवश्यक है |
इस प्रकार के केस में इसके जुड़े हुए अन्य पहलुओं
पर भी गौर करना आवश्यक है, समान्यतः लीवर, स्प्लीन, युटेरस, पाचन की समस्याएं जैसे
कब्ज़ आदि भी वेरीकोस समस्या से जुडी हुई होती है| लीवर के आकार में वृद्धि(
Hepatomegali), स्प्लीन में वृद्धि (Splenomegali), का पता लगाया जाना चाहिए| इस प्रकार यदि कोई जुडी हुई समस्या पाई जाती है तो कार्डस
ऍम, चेलिडोनियम प्रभावकारी है |रोग से जुडी हुई समस्याओं के निदान से भी शिराए पुनः
अपने मूल आकार में वापस आ जाती है |
एसिड फ्लौर औषधि इस प्रकार के मामलों में बेहद उपयोगी है,
यह वैरिकोस ulcer हेतु भी लाभदायक है, इसका मुख्य लक्षण है मरीज को ठण्ड से आराम
मिलता है और गर्म चीजों से, कुछ ओढने से और गर्म हवा से तकलीफ में वृद्धि होती है
| साईलीशिया भी इस प्रकार के रोग में कारगर है किन्तु इसका रोगी शीतप्रधान होता है, उसे जरा भी ठण्ड पसंद नहीं होती है, ज्यदातर ओढ़ कर गर्म कमरे में
रहना चाहता है |
होमियोपैथी चिकित्सा
में लक्षणों की विशेषता अधिक महत्त्वपूर्ण है, आप यह समझ सकते हैं कि लक्षणों के आधार पर ही दवा का चुना जाना आवश्यक होता है | इस प्रकार जटिल रोगों का इलाज भी
होमियोपैथी में संभव है | चिकित्साकाल के दौरान मरीज को भी अपने लक्षणों में आने
वाले परिवर्तन पर ध्यान देना चाहिए एवं समय समय पर चिकित्सक को भी अवगत करते रहें
|
डॉ. भूपेंद्र गुप्ता
होमियोपैथिक
चिकित्सक एवं सलाहकार
डॉ. गुप्ता
होमियोपैथिक चिकित्सालय
कटघोरा, कोरबा ,
छत्तीसगढ़
मो. नं. –
9993697234
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